चौरासी सिद्धों के सम्प्रदायों में सबसे प्रसिद्ध बाबा गोरखनाथ का नाथ सम्प्रदाय हुआ शारीरिक तपस्या, खासकर हठयोग, पर ये लोग बहुत बल देते थे, किन्तु निराकार की उपासना इनका चरम लक्ष्य था, यद्यपि मूर्तिपूजा के विरोधी नहीं थे और तीर्थाटन करते रहते हैं। सनातन समाज के अन्धयुग में सत्य की अलख जगाने में इन सिद्धों के सम्प्रदायों की बड़ी भूमिका रही है, और इनसे ही बल पाकर भक्ति आन्दोलन ने मृतप्राय हिन्दुत्व को संजीवनी दी ।
हिन्दुओं के मुख्यत: चार संप्रदाय है:- वैदिक, वैष्णव, शैव और स्मार्त। शैव सम्प्रदाय के ऊपर आप हमारा लेख यहाँ पढ़ सकते हैं। शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही शाक्त, नाथ और संत संप्रदाय आते हैं।
हिस्ट्रीटयूट इतिहासनकारों ने झूठा प्रचार कर रखा है कि भक्ति आन्दोलन मध्ययुग में आरम्भ हुआ, जबकि उपनिषदों की शिक्षा भक्ति मार्ग की ही है जिसे श्रीकृष्ण की गीता ने आगे बढाया।
हिन्दू मूल के मुस्लिम को साथ लाये
बहुत से सूफियों की योग में रूचि रही है, और बहुत से हिन्दू मूल के मुस्लिम भी अपनी जड़ों से पूरी तरह कटे नहीं हैं | नाथ सम्प्रदाय की कई धाराओं ने उनको समेटकर धर्म के मार्ग पर लाने का प्रयास किया | किन्तु बहुत से हिन्दू-विरोधी मुसलमान (बदायूनी जैसे) और ईसाई “विद्वानों” ने झूठा प्रचार कर रखा है कि नाथ सम्प्रदाय हिन्दू है ही नहीं , और हिन्दुत्व एवं इस्लाम के बीच का सम्प्रदाय है ! यहाँ तक प्रचार किया गया है कि नाथ सम्प्रदाय के योगी सूअर और गाय का मांस खाते थे, जबकि इसके संस्थापक का नाम ही था “गो + रक्ष + नाथ” | नाथ सम्प्रदाय के अन्तर्यामी परमहंस योगियों से मेरी भेंट हुई है।
महंथ आदित्यनाथ भले ही पीठाध्यक्ष बन गए हों, वे परमहंस नहीं हैं, उनके सम्प्रदाय में आध्यात्मिक पैमाने पर उनसे बड़े बहुत से सच्चे साधु हैं जो प्रचार से दूर रहते हैं।
नाथ सम्प्रदाय के ग्रन्थ
नाथ सम्प्रदाय के ग्रन्थों में कुछ जगहों पर “हिन्दू”, मुस्लिम” और “योगी” का पृथक सम्प्रदायों के रूप में कई बार उल्लेख मिलता है, किन्तु पूरे ग्रंथों की भावना को समझने पर स्पष्ट यह होता है कि गृहस्थों के लिए “हिन्दू” और सन्यासी योगियों के लिए “योगी” शब्द का प्रयोग किया गया है। असल में गृहस्थों के लिए भी नहीं, बल्कि कलियुग के उन पथभ्रष्ट हिन्दुओं के लिए “हिन्दू” शब्द का प्रयोग किया गया है जिनके धर्मविरुद्ध संस्कारों के कारण देश गुलाम बना।
हिन्दू तो “धर्म” है, रिलिजन (सम्प्रदाय) नहीं,
गोरखवाणी जैसे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे “सबदी” को सन्दर्भ से हटाकर आधुनिक युग के हिन्दू-विरोधी लोग सिद्ध करना चाहते हैं कि नाथ सम्प्रदाय हिन्दू है ही नहीं | सिख सम्प्रदाय भी ऐसा ही था, किन्तु अंग्रेजों की गलत शिक्षा प्रणाली और पश्चिम भारत (पाकिस्तान) की खिचड़ी संस्कृति के कारण अब वह “हिन्दू” से पृथक अलग रिलिजन बन गया है , जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू तो “धर्म” है, रिलिजन (सम्प्रदाय) नहीं, धर्म में अनेकों सम्प्रदाय होते हैं। कई धर्म-विरुद्ध सम्प्रदाय भी होते हैं | जो वेदों में आस्था रखते हैं उन सभी सम्प्रदायों को “आस्तिक” कहा जाता था, आज के सन्दर्भ में वे ही हिन्दू हैं।
वेद-विरोधी सभी सम्प्रदायों को अ-धार्मिक कहना चाहिए
मूल रूप से बौद्धमत, जैनमत, सिखमत, नाथ सम्प्रदाय, आदि वेद-विरोधी नहीं थे, कालान्तर में कई असुर भी उनमें घुस गए और वेद-विरोधी प्रचार करने लगे | नाथ सम्प्रदाय आर्यावर्त के हृत्प्रदेश में था अतः सबसे कम दूषित हुआ | सन्यासी को यज्ञ करने का अधिकार नहीं होता, अतः अंग्रेजों ने झूठा प्रचार किया कि बौद्ध, जैन, नाथ, आदि सन्यासियों के सारे सम्प्रदाय वेद-विरुद्ध हैं।
अखाड़ों में मिलता है सैन्य प्रशिक्षण
सन्यासियों को अखाड़ों में सैन्य प्रशिक्षण देकर मुस्लिम आक्रान्ताओं से युद्ध करने की परम्परा में नाथ सम्प्रदाय सबसे आगे रहता था | अंग्रेजों ने सन्यासियों के सैन्य प्रशिक्षण पर पाबन्दी लगाई और बंगाल के सन्यासी विद्रोह (1770-1) में बीस हज़ार सन्यासियों का वध किया (उसी की कथा पर “आनन्द मठ” बंकिम बाबू ने लिखा जिसमें उनका गीत “वन्दे मातरम्” है)| महायोगी गोरखनाथ के बहुत से चेले गृहस्थ भी हैं जिनकी एक शाखा अब भारत और नेपाल में “गोरखा” कहलाती है | गोहत्यारों से लड़ने की परम्परा रही है।