रिपोर्टर रतन गुप्ता
डीबीएस न्यूज, सोनौली: नेपाल में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर शह और मात का खेल जारी है। शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस और केपी शर्मा ओली की सीपीएन-यूएमएल ने अपने-अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया है। नेपाली कांग्रेस के पक्ष में प्रधानमंत्री प्रचंड सहित आठ पार्टियों ने समर्थन व्यक्त किया है, वहीं ओली के साथ अभी तक सिर्फ उन्हीं की पार्टी है।
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अब भी उम्मीद है कि राष्ट्र्रपति चुनाव में उनके उम्मीदवार की जीत होगी। ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। यूएमएल ने सुबास नेमबांग को राष्ट्रपति पद के लिए आधिकारिक उम्मीदवार बनाया है। वहीं, सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नता रामचंद्र पौडेल को राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया है। पौडेल की उम्मीदवारी को आठ राजनीतिक दलों ने समर्थन दिया है। इसमें ओली के समर्थन से प्रधानमंत्री बने पुष्प कमल दहल की सीपीएन- माओवादी भी शामिल है। वहीं, नेमबांग को 9 मार्च को होने वाले चुनाव के लिए अभी तक अपनी पार्टी के अलावा किसी अन्य पार्टी का समर्थन नहीं मिला है।
ओली की पार्टी को अब भी जीत की उम्मीद
ओली की पार्टी यूएमएल के नेताओं को उम्मीद है कि मतदान से पहले के दिनों का उपयोग ज्वार को अपने पक्ष में करने के लिए करेंगे। यूएमएल के एक पदाधिकारी ने बताया कि हम आठ दलों के गठबंधन में दरार पैदा करने और नेमबांग को राष्ट्रपति के रूप में जीत दिलाने की पूरी कोशिश करेंगे। 25 दिसंबर को जब सीपीएन माओवादी सेंटर के पुष्प कमल दहल प्रधानमंत्री बने तब यूएमएल के एक उम्मीदवार को नए राष्ट्रपति के रूप में चुनने की सहमति बनी थी। उस समय माओवादी और यूएमएल गठबंधन के पास राष्ट्रपति चुनाव में अपने प्रत्याशी को जीत दिलाने के लिए पर्याप्त वोट थे। इसी समझ के आधार पर यूएमएल के देवराज घिमिरे को हाउस स्पीकर चुना गया।
नेपाली कांग्रेस ने प्रचंड को समर्थन देकर खेला था बड़ा दांव
इस दौरान नेपाली कांग्रेस ने 10 जनवरी को प्रधानमंत्री प्रचंड को अपना विश्वास मत देकर यूएमएल-माओवादी गठबंधन को पहला झटका दे दिया। अब प्रचंड का कहना है कि उनके ऊपर कांग्रेस के एहसान क वापस करने का दबाव है। उनके लिए, इसका मतलब कांग्रेस सहित राजनीतिक दलों के एक व्यापक वर्ग के लिए स्वीकार्य राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को खोजना था। यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने शनिवार को पार्टी सचिवालय की बैठक के बाद कहा, “मुझे विश्वास है कि प्रचंडजी [दहल] हमारे उम्मीदवार को वोट देंगे।” “उन्होंने मुझे बताया कि वह अब दबाव में है और मुश्किल स्थिति में है।”
ओली को अब भी प्रचंड से वफा की उम्मीद
ओली ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए बने नए गठबंधन को प्रधानमंत्री आवास पर आठ दलों की चाय बैठक बताकर खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि हम अभी भी उनमें से कुछ के संपर्क में हैं। 25 दिसंबर का समझौता कायम है और हमें विश्वास है कि हमारा उम्मीदवार जीतेगा। हालांकि, ओली के इस कदम को रणनीतिक माना जा रहा है। यह सब होता देखकर भी यूएमएल ने दहल सरकार से अपना समर्थन वापस नहीं लिया है। राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, जनता समाजवादी पार्टी और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी ने 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री के रूप में प्रचंड का समर्थन किया था। हालांकि, चुनाव के दौरान ये पार्टियां नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा थीं।
राष्ट्रपति प्रत्याशी के लिए सबसे समर्थन मांग रहे ओली
यूएमएल के एक पदाधिकारी ने बताया कि नेमबांग की उम्मीदवारी के लिए समर्थन मांगने के लिए, यूएमएल ने कांग्रेस को छोड़कर सदन में सभी दलों को पत्र भेजे हैं। नए गठबंधन को तोड़ने के लिए हम सभी पार्टियों के साथ बातचीत फिर से शुरू करेंगे। वास्तव में, प्रक्रिया शनिवार को शुरू हुई। दहल और कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के एक नए गठबंधन बनाने के प्रयासों को विफल करने के लिए, यूएमएल अध्यक्ष ओली ने सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) अध्यक्ष माधव कुमार नेपाल को नए राष्ट्रपति बनने के लिए अपने समर्थन की पेशकश की थी। लेकिन नेपाल ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और कांग्रेस-माओवादी खेमे में शामिल हो गए।
ओली ने माधव कुमार नेपाल को फंसाने के लिए चली थी चाल
ओली ने नेबांग की उम्मीदवारी के लिए यूनिफाइड सोशलिस्ट के समर्थन की मांग करते हुए शनिवार को नेपाल को पत्र लिखा। इसके जवाब में, नेपाल की पार्टी के प्रवक्ता जगन्नाथ खातीवाड़ा ने कहा कि आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए यूएमएल से हाथ मिलाने के लिए बहुत देर हो चुकी है। पार्टी ने हालांकि ओली को धन्यवाद दिया क्योंकि पत्र ने औपचारिक रूप से राजनीतिक संवाद के दरवाजे खोल दिए थे और यह भविष्य में कुछ एजेंडे पर एक साथ काम करने के लिए माहौल बनाने में मदद करेगा।