रिपोर्टर रतन गुप्ता सोनौली बॉर्डर नेपाल 9/5/2023
डीबीएस न्यूज, सोनौली: नेपाल मे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई नेपाली शेरपा के बिना बहुत मुश्किल है। लेकिन, अब ये शेरपा अपने बच्चों को इस पेशे में नहीं आने दे रहे। इसकी खास वजह है।
माउंट एवरेस्ट और शेरपा दशकों से एक-दूसरे के करीबी माने जाते रहे हैं। लेकिन, लग रहा है कि वर्षों में तैयार हुआ यह रिश्ता टूटने की कगार पर है। जबकि, एक रिपोर्ट के मुताबिक इस पर्वतारोहण सीजन में ही करीब 900 पर्वतारोही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने की तैयारी कर रहे हैं और इनमें से अधिकांश को सहायता के लिए नेपाली गाइड या शेरपा की ही आवश्यकता पड़ेगी।
शेरपा के पेशे से मुंह मोड़ रहे हैं नेपाली गाइड
टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई में मदद के लिए मशहूर हो चुके नेपाली गाइड कामी रीता शेरपा नहीं चाहते कि उनका 24 वर्षीय बेटा लक्पा तेनजिंग उनके पेशे को आगे बढ़ाए। कामी के नाम दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर सबसे ज्यादा बार चढ़ाई का रिकॉर्ड है।
‘मुझे कोई भविष्य नहीं दिखता’
2021 के आखिरी दिनों की बात है। एक दिन वह अपने बेटे को एवरेस्ट की चोटी के ठीक नीचे ले गए और उसे बताया कि उनके लिए यह चोटी कितनी नजदीक है। लेकिन, शेरपा ने अपने बेटे से कहा कि ‘मुझे (इसमें अब) कोई भविष्य नहीं दिखता।’ उन्होंने उससे कहा कि ‘यह एक संघर्ष है’
पुश्तैनी रोजगार रहा है शेरपा का काम
शेरपा का पेशा ऐसा रहा है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता आया है। लेकिन, बढ़ते जोखिमों की वजह से शेरपा परिवारों ने इस पुश्तैनी रोजगार से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। यह किसी एक शेरपा परिवार की बात नहीं है। यह भावना तेजी से बढ़ती जा रही है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई के लिए पर्वतारोहियों को गाइड करने में खतरे ही खतरे हैं।
जान हथेली पर लेकर चलते हैं शेरपा
यह ऐसा पेशा है, जिसमें हमेशा गिरने का खतरा रहता है। एवलांच की घटनाओं का कोई ठिकाना नहीं है और ऊपर से मौसम की अप्रत्याशित घटनाओं ने दुर्घटनाओं की आशंकाएं बढ़ाई हुई है। यहां पर्वतारोहण का रिकॉर्ड रखने वाली संस्था हिमालयन डेटाबेस के मुताबिक पिछली शताब्दी में इस दौरान 315 मौतें हुई हैं, उनमें करीब एक-तिहाई शेरपा गाइड की हुई हैं।
पिछले महीने भी तीन शेरपाओं की हुई मौत
पिछले महीने ही एवरेस्ट बेस कैंप के पास एक ग्लेशियर से छूटे बर्फ की एक चट्टान की चपेट में आकर तीन शेरपाओं की मौत हो गई। दिक्कत ये भी है कि जान जोखिम में होने के बावजूद सिर्फ उन्हीं शेरपाओं की कमाई बहुत ज्यादा अच्छी होती है, जो अपनी कामयाबी बार-बार साबित कर चुके हैं। बाकियों के लिए यह सालाना करीब 4 हजार डॉलर के आसपास रहती है।
वित्तीय सुरक्षा की खास गारंटी नहीं मिलती
वैसे, शेरपा नई पीढ़ी को इस धंधे में नहीं लाना चाहते इसकी मुख्य वजह दूसरी है। अगर एक गाइड पर्वतारोहण के दौरान अपंग हो जाता है या उसकी मौत हो जाती है तो उसके परिवार की सुरक्षा के लिए खास व्यस्था नहीं है। बीमा है, लेकिन इससे इतना नहीं मिलता कि परिवार को वित्तीय तौर पर सुरक्षित कर दिया जाए। कल्याणकारी फंड के वादे ही हुए हैं, यह सुविधा उन्हें उपलब्ध नहीं हो सकी है। जबकि, नेपाल सरकार के राजस्व के वे बहुत बड़े जरिया हैं।
नेपाल मे कई शेरपा अपना रहे हैं दूसरा रोजगार
कई शेरपाओं ने पहाड़ को छोड़कर विदेशों की ओर कूच कर लिया है। कुछ ने नेपाल में ही दूसरे रोजगार तलाश लिए हैं। काजी शेरपा नाम के एक गाइड ने 8 साल तक यह काम करने के बाद 2016 में इस पेशे को छोड़कर सिक्योरिटी गार्ड का धंधा अपना लिया। वे कहते हैं, ‘मैं मुश्किल से पाले गए अपने बच्चों को माउंटेन गाइड वाला वही जोखिम से भरा रोजगार अपनाने को नहीं कहूंगा।’
शेरपागीरी छोड़ने वालों की बढ़ रही है संख्या
वे 2014 में आए एक ऐसे एवलांच में बच गए थे, जिसमें 16 शेरपाओं की मौत हो गई थी। इसे माउंट एवरेस्ट के सबसे खतरनाक तबाही में से गिना जाता है। इसी तरह से 63 वर्षीय अपा शेरपा भी हैं। 2018 में कामी रीता से पहले सबसे ज्यादा एवरेस्ट चढ़ाई का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम था।
हिमालय से जुड़े दूसरे काम में भी बढ़ी दिलचस्पी
वह 2006 में अमेरिका चले गए और परिवार के साथ वहीं बस गए। उनके बड़े बेटे तेंजिंग का कहना है, ‘यह सब शिक्षा के लिए किया गया है।’ वे एक बायोटेक कंपनी में अकाउंटेंट हैं। कामी रीता के बेटे लक्पा का कहना है कि मेरे माता-पिता दोनों शिक्षा से वंचित थे, इसलिए पहाडों में कड़ी मेहनत करनी पड़ी। लेकिन, वह टूरिज्म मैनेजमेंट कर रहे है। वह, लैंडस्केप फोटोग्राफर बनना चाहते है। उनके मुताबिक,’इससे मैं पहाड़ों के नजदीक रहूंगा, लेकिन उससे एक दूरी रहेगी।