रिपोर्टर रतन गुप्ता
डीबीएस न्यूज, सोनौली: खालिस्तान समर्थक और कट्टरपंथी नेता अमृतपाल सिंह को नेपाल में देखे जाने की जानकारी मिल रही है। अगर ऐसी जानकारियों में कुछ दम है तो हम उसे पकड़कर भारत क्यों नहीं ला पा रहे हैं? क्या भारत और नेपाल के बीच प्रत्यर्पण संधि में ऐसा कोई पेंच है, जिसका फायदा ज्यादा अपराधी उठाते हैं? इससे पहले अतीक अहमद का बेटा भी नेपाल भाग गया था।
नेपाल में बताए जा रहे खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथी नेता अमृतपाल सिंह को भारत लाना इतना मुश्किल क्यों है?
खालिस्तान समर्थक और कट्टरपंथी नेता अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी की अटकलों के बीच पंजाब पुलिस की कई टीमें उसके अलग-अलग ठिकानों पर लगातार छापेमारी कर रही हैं. पंजाब पुलिस का कहना है कि अब तक उसे पकड़ने में कामयाबी नहीं मिल पाई है. बता दें कि अमृतपाल सिंह के खिलाफ छह एफआईआर के अलावा नेशनल सिक्योरिटी एक्ट भी लगा दिया गया है. इस बीच उसके नेपाल में देखे जाने की खबरें भी आ रही हैं।
अगर अमृतपाल सिंह के नेपाल में होने की खबरों में थोड़ा भी दम है तो हम उसे नेपाल से पकड़कर भारत क्यों नहीं ला पा रहे हैं? क्या भारत और नेपाल के बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है? अगर है तो क्या उसमें कोई ऐसा पेंच है, जो उसके जैसे अपराधियों के प्रत्यर्पण में अड़चन डालता है? इससे पहले अतीक अहमद का बेटा भी भागकर नेपाल में छुप गया था.
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क्या होती है प्रत्यर्पण संधि?
सबसे पहले समझते हैं कि प्रत्यर्पण संधि क्या होती है? प्रत्यर्पण संधि दो देशों के बीच हुआ ऐसा समझौता है, जिसके मुताबिक देश में अपराध करके दूसरे देश में छुपने वाले अपराधी को पकड़कर पहले देश को सौंपा दिया जाता है. भारत की 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है. यही नहीं, केंद्र सरकार कई अन्य देशों के साथ भी प्रत्यर्पण संधि की कोशिशों में जुटी हुई है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों के बीच इस तरह की संधि है ताकि उनके भगोड़े अपरोधियों को छुपने की जगह ना मिले. इस संधि के तहत आतंकवादी, जघन्य अपराधी और आर्थिक अपराधियों समेत कई तरह के मामलों में दूसरे देशों से मदद मिलती है।
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि है ताकि उनके भगोड़े अपरोधियों को छुपने की जगह ना मिले।
किन देशों से है हमारी संधि?
भारत की इस समय अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है। इनके अलावा सऊदी अरब और रूस जैसे बड़े देश भी इस सूची में शामिल हैं. इसके अलावा 12 देशों के साथ भारत की प्रत्यर्पण व्यवस्था है. एक्स्ट्राडिशन ट्रीटी और अरेंजमेंट में वही फर्क वही है, जो लिखित वादे और बोले गए वादे में होता है. अरेंजमेंट में किसी कानून की ढाल बनाकर एक देश दूसरे देश को उसका अपराधी सौंपने से बच भी सकता है. भारत की पड़ोसी देशों में सिर्फ भूटान से प्रत्यर्पण संधि है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, अजरबेजान, बहरीन, बेलारूस, बेल्जियम, ब्राजील, बुल्गारिया, कनाडा, चिली, मिस्र, हांगकांग, इंडोनेशिया, फ्रांस, जर्मनी, ईरान, इजरायल, कजाकिस्तान, कुवैत, मलेशिया, मॉरीशस, मैक्सिको, मंगोलिया, नेपाल, नीदरलैंड्स, ओमान, फिलिपींस, पोलैंड, पुर्तगाल, कोरिया गणराज्य, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्विट्जरलैंड, ताजिकिस्तान, थाइलैंड, ट्यूनीशिया, तुर्की, यूएई, युक्रेन, उज्बेकिस्तान और वियतनाम से भी प्रत्यर्पण संधि है।
किसके साथ नहीं है संधि?
भारत की पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, चीन, मालदीव और म्यांमार से प्रत्यर्पण संधि नहीं है. नेपाल के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं होने जैसी ही है. नेपाल की कोइराला सरकार ने भारत के साथ अक्टूबर 1953 में प्रत्यर्पण संधि की थी. बाद में इसमें संशोधन की जरूरत महसूस की गई. साल 2006 के बाद से कई बार दोनों देश संधि में संशोधन के करीब तो पहुंचे, लेकिन अमल में नहीं ला पाए. भारत-नेपाल ने 2005 में नई प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें आतंकवादियों और आर्थिक अपराधियों के प्रत्यर्पण की व्यवस्था की गई थी. माना गया था कि इससे नई चुनौतियों और नेपाल व भारत के कुछ हिस्सों में माओवादी हिंसा से निपटने में मदद मिलेगी. हालांकि, बाद में इसमें संशोधन की जरूरत महसूस की गई।
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भारत-नेपाल के बीच ना होने जैसी प्रत्यर्पण संधि के कारण अमृतपाल सिंह पहले भी कई अपराधी भागकर नेपाल जा चुके हैं।
नेपाल भागना आसान क्यों?
अगर खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथी नेता अमृतपाल सिंह नेपाल जाकर छुप गया है तो ये कोई पहली ऐसी घटना नहीं होगी. इससे पहले यूपी के कुख्यात अपराधी अतीक अहमद का बेटा असद भी नेपाल फरार हो गया था. पुलिस को उमेल पाल हत्याकांड में उसकी तलाश थी. इससे पहले चोरी-लूट से लेकर हत्या और आतंकी घटनाओं में शामिल रहे अपराधी भी भागकर नेपाल में छुपते रहे हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार के अपराधियों के लिए नेपाल भागना बहुत आसान है. इन दोनों राज्यों से अपराधी वारदात को अंजाम देने के बाद पैदल ही नेपाल चले जाते हें. दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों के अपराधियों ने भी कई बार छिपने के लिए नेपाल को ठिकाना बनाया है. दरअसल, अपराधी नेपाल को इसलिए भी चुनते हैं क्योंकि वहां पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती है. कुछ अपराधियों ने तो वहां जाकर दोहरी नागरिकता तक ले ली है।
क्यों आती है दबोचने में दिक्कत?
नेपाल में किसी भी भारतीय अपराधी की गिरफ्तारी बेहद मुश्किल है. नेपाल पहुंचते ही मामला अंतरराष्ट्रीय हो जाता है. ऐसे में अपराधी को पकड़कर भारत लाने में कई नियम-कानून आड़े आते हैं. अगर नेपाल से किसी अपराधी को पकड़कर लाना होता है तो सबसे पहले दोनों देशों की सरकारों के स्तर पर बातचीत करनी पड़ती है. सबसे पहले पुलिस को भारत सरकार के गृह मंत्रालय से संपर्क करना होगा. फिर गृह मंत्रालय विदेश मंत्रालय से बात करेगा. इसके बाद विदेश मंत्रालय नेपाल के विदेश मंत्रालय से बातचीत करेगा. फिर नेपाल का गृह मंत्रालय अपनी पुलिस को सहयोग करने या गिरफ्तार कर सौंपने का निर्देश देता है. तब तक अपराधी किसी दूसरे देश निकल जाता है।
प्रोटोकॉल दरकिनार करें तो…?
अगर भारत के किसी राज्य की पुलिस सभी प्रोटोकॉल को बायपास कर वहां ऑपरेशन करती है तो हमारे पुलिस अधिकारियों को जेल तक हो सकती है. नेपाल के साथ अच्छे संबंधों के चलते कुछ मामलों में सभी प्रोटोकॉल को दरकिनार करते हुए अपराधी को दबोचकर भारत लाया जा चुका है. ऐसे ही मामले में पंजाब के पूर्व सीएम सरदार प्रताप सिंह कैरों की हत्या में शामिल अपराधियों को नेपाल से पकड़कर लाया गया था. इस ऑपरेशन को डीआईजी अश्विनी कुमार ने लीड किया था. हालां कि, अगर स्थानीय लोग उन्हें घेर लेते तो मुश्किल खड़ी हो सकती थी. वहीं, पकड़े जाने पर उनकी पूरी टीम को 6 महीने की जेल भी हो सकती थी।