डीबीएस न्यूज। हिन्दू धर्म मे आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पंद्रह दिन पितृपक्ष (पितृ =पिता) के नाम से विख्यात है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात् उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं।
कल सोमवार से पितृपक्ष शुरू हो रहा है। यह छह अक्तूबर तक पितरों का तर्पण किया जाएगा। इस पाक्षिक में कोई भी धार्मिक व मांगलिक कार्य नहीं होंगे। पितृपक्ष संपन्न होने के बाद नवरात्र पर्व के साथ बाजार में रौनक लौटेगी।
इस दौरान लोग अपने अपने पूर्वजों का श्राद्ध करेंगे। दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए अनुष्ठान किए जाएंगे। पितरों के तर्पण से पितृ प्रसन्न होते हैं। जिस तिथि को व्यक्ति का निधन होता है उसी तिथि को उसका श्राद्ध करने की परंपरा है। श्राद्ध करने से पितृ दोष शांत होता है। पूर्वजों की कृपा मनुष्य पर हमेशा बनी रहती है। पितृपक्ष सोमवार से शुरू होकर छह अक्तूबर को संपन्न होगा।
संपूर्ण पक्ष में श्राद्ध की तिथियां : पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर
तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर
पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर
नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर
दशमी श्राद्ध – 1 अक्टूबर
एकादशी श्राद्ध – 2 अक्टूबर
द्वादशी श्राद्ध- 3 अक्टूबर
त्रयोदशी श्राद्ध – 4 अक्टूबर
चतुर्दशी श्राद्ध- 5 अक्टूबर
अमावस्या श्राद्ध- 6 अक्टूबर
नोट : शास्त्रों में बताया गया है कि चतुर्दशी तिथि को केवल अपमृत्यु यानी अप्राकृतिक रूप से जिनकी मृत्यु हुई हो, केवल उन लोगों का ही श्राद्ध करने का विधान है। वही इस बार 26 सितम्बर को पितृपक्ष की कोई तिथि नही है।
अमावस्या तिथि में मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों के अलावा जिनकी मृत्यु की तिथि का पता नहीं हो, जिनका श्राद्ध पक्ष में मृत्यु तिथि पर श्राद्ध नहीं हुआ हो उनका भी श्राद्ध कर्म किया जा सकता है।