WHO (World Health Organization) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2016 में भारत में दुनिया में सबसे ज़्यादा बच्चों ने जानें गंवाईं जिसमें 100,000 बच्चे शामिल थे. बच्चों की मौत का कारण और कुछ नहीं, बल्कि हवा में प्रदूषण था. दिल्ली में भी बढ़ते हवा में ज़हर के कारण बच्चों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं और तमाम परेशानियों से वो भी निजात पाना चाहते हैं. नवजात बच्चा बीमारियों से लड़ने में कमज़ोर होता है और बड़े होने के साथ उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जाती है. एक तरफ जहाँ दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी आ गई है, वहीं, दूसरी तरफ बच्चों के लिए समस्याएं बढ़ती नज़र आ रही हैं.
बाल रोग विशेषज्ञ व दिल्ली मेडिकल काउंसिल के प्रेसीडेंट अरूण गुप्ता ने कहा,” सूक्ष्मकण PM2.5 मां के खून के रास्ते जब शिशु के संपर्क में आता है तो मां का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. ऐसे वक्त में बच्चे में पोषक त्तवों की सप्लाई कम हो जाती है. और आने वाला बच्चा कुपोषण का शिकार बन जाता है. वहीं बड़ा कण PM10 गर्भवती मां के फेफड़ो में जाकर चिपक जाता है इससे मां को अस्थमा का अटैक पड़ जाता है. और बच्चे की समय से डिलीवरी भी हो जाती है. और ऐसे बच्चे की मौत भी हो सकती है.
दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले आचार्य भिक्षु अस्पताल के फिजिशियन हृदयेश बताते हैं कि प्रदूषण में हानिकारक कणों के अलावा जहरीली गैसें भी होती हैं जो मां के खून से बच्चे में भी पहुंच जाती हैं. ऐसे वक्त में बच्चे की Intra uterine death यानि गर्भ में मौत भी हो सकती है. क्योंकि बच्चे को ऑक्सीजन या फिर पोषक तत्व मां से ही मिलते हैं.
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है और इसका खासा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और बच्चों की बात की जाए तो दिवाली के बाद लगभग एक हफ्ते के बाद सोमवार को स्कूल खुले हैं जिसके चलते बच्चों की सेहत पर असर पड़ रहा है. अभिभावकों की बात की जाए तो वो भी इस मसले पर खासे परेशान हैं क्यूंकि बच्चे कई गुना अधिक संवेदनशील होते हैं जिसमें खुले स्कूल के चलते माता पिता चिंतित हैं.